Thursday, October 24, 2013

अशोक आंद्रे

ओ बेसुरी ताकतों
 खामोश
समय की धूल में
खोये सपनो में रहने वाले
कब्र से उठ खड़े हो गये हैं
जिन्हें उनकी सीमा में रख कर
चंद लोगों ने
हाथ बढ़ा कर बाँध दिया
कब्र में दस्तरखान लगा
बिठा दिया था उन्हें.
चांदनी रात में
एक मोम बत्ती की रोश्नी की
लो का सहारा मिल गया है 
 अपनी बीती जिन्दगी की इमारत को
खड़ा करने की ताकत
विशवास नहीं तो आओ
उस मरघट की तरफ.
जहां हलचल है
उड़ती धूल है
ताकत है समय को बाँधने की.
आखिर तुमने तो सिर्फ
जीवन भर
मरघट ही तो तैयार किये हैं
बेबस जिंदगियों को
जमींदोज करने के लिए.
ओ बेसुरी ताकतों!

  ******

नन्ही कोपलों की

 ओ मेरे सात रंगों के बेशर्म धागों
क्यों मन की सोच को उलझा देते हो  
इसीलिए मेरे जीवन के सारे स्पर्श/गीत
रेतीले ढूहों में धसने लगते हैं
अँधेरा स्पर्श तो करता है
लेकिन मौन को अधिक गहरा कर देता है
अनंत की गहराई भी कमजोर पड़   जाती है
तभी तो रोश्नी से लबालब उसका कमरा
अंधेरों का समूह तैयार कर देता है
ये सातो रंग
फिर भी उलझी डोर के घेरे बनाकर
उसके चारों ओर फैला देते हैं
उसकी सोच हार नहीं मानती
उसी में से दुरूहता को छांट
नन्ही कोपलों के गीत गाने लगती है.

       ******

साक्षात्कार
वह खुश था कि
उसे मौत से साक्षात्कार करने के लिए
निमंत्रण मिला था
आखिर उसका इन्तजार जो
आज ख़त्म हो रहा था
जानता था कि वह
मौत नहीं
बल्कि मुक्ति का द्वार है
जहां से पूरी सृष्टि को निहारने
स्वतः स्फूर्त प्रेरणा का श्रोत्र होगा
तब झूमता हुआ कहेगा,
ओह तुम कितनी खूबसूरत हो प्रिय
इसी के लिए तो उसने
मन के सारे कपाट खोल रखे थे

   ******