Sunday, June 1, 2014

अशोक आंद्रे

सपनें

 कितने सपने लेता है आदमी
सारे रिश्ते
सपनों के करीब
झिलमिलाते हैं उसके
कहते हैं कि सपने
आसमान से आते हैं
लेकिन आदमी चला जाता है इक दिन
और सपने नीचे रह जाते हैं
आखिर सपने साथ क्यों नहीं जाते ?
उन सपनों का क्या करे जो
पीछे रह जाते हैं,
क्योंकि वे तो
सर्वनाम बन कर जीने लगते हैं.
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यादें
मेरे चारों ओर
यादों को समेटे
सूखे पत्तों का अंबार लगा हुआ है
और मैं अपनी बेवकूफी से
उन पत्तों पर पैर रख कर
अपनी यादों की चिंदी-चिंदी कर बैठता हूँ
शायद यही नियति होती है
उस सत्य की
जिसे सदियों से हम
पालते पोसते रहे हैं.
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भूखे पेट
ये कैसा दृश्य है
दीया तो मंदिर में जलता है
लेकिन अँधेरा
घर में फैलता है
आदमी है कि
गीत प्रभु के गाता है
दूर कहीं भूखे पेट
बिलखता है बच्चा .
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