tag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post6770068227770510311..comments2023-05-07T20:49:40.257+05:30Comments on kathasrijan: अशोक आंद्रे ashok andreyhttp://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-49080296867376040572013-07-28T06:55:59.105+05:302013-07-28T06:55:59.105+05:30Priya Ashok ji,
Kavitayen padhin . Man dravit ho...Priya Ashok ji,<br /> <br />Kavitayen padhin . Man dravit ho gaya. Pahli kavita teele wali bahut hi acchi lagi<br /> shail agrawalAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-59348789326663865912013-07-23T12:56:08.880+05:302013-07-23T12:56:08.880+05:30 इस कविता को पढ़कर गांधी जी अनायास याद आ गए। वे कह... इस कविता को पढ़कर गांधी जी अनायास याद आ गए। वे कहा करते थे -हमारा भारत गांवों में बसता है ।कवि इस तथ्य की ओर संकेत करता हुआ अपने मन की पीड़ा बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करता है। सच मेँ आज दावानल की आग की तरह शहर गांवों -जंगलों की ओर बढ़ता ही आ रहा है ---उसकी सभ्यता के आगोश में गाँव डूब रहे हैं ,नई पीढ़ी गुम हो रही है और डूब रही है वर्षों पुरानी हमारी संस्कृति और प्राकृतिक धरोहर ।<br />कविता पढ़कर यह अनुभूति प्रबल हो उठती है कि इनके स्वरूप को बचाना निहायत जरूरी है । सुधाकल्पhttps://www.blogger.com/profile/14287746370522569463noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-71089041471169137942013-07-18T21:51:51.852+05:302013-07-18T21:51:51.852+05:30शहरीकरण की प्रक्रिया न सिर्फ कस्बों को बल्कि गाँवो...शहरीकरण की प्रक्रिया न सिर्फ कस्बों को बल्कि गाँवों तक को लील रही है. अस्तित्व बचा है तो बस इतना कि कुछ खेत खलिहान शेष है जो आधुनिक तकनीक द्वारा खेती से वंचित है गाँव कस्बों का हिस्सा है; क्योंकि शहर को खेत खलिहान पसंद नहीं. विश्व मानचित्र से ये कस्बे कब मिट जाएँ मालूम नहीं. सामयिक गहन चिंतन... बहुत शुभकामनाएँ. डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-45299261384564998312013-07-15T16:35:41.795+05:302013-07-15T16:35:41.795+05:30गाँव-कस्बे जंगल की अस्मिता को लीलती सीमेंट की सुन...गाँव-कस्बे जंगल की अस्मिता को लीलती सीमेंट की सुनामी से चिंतित एक<br />सुधिमना कवि की अन्तर्वेदना ....दीर्घनिन्द्रा से ग्रस्त आदमी को जगाती<br />हुई एक सशक्त रचना !<br /><br />इंद्र सविता Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-22620470581393694252013-07-15T10:06:10.841+05:302013-07-15T10:06:10.841+05:30 गाँव-कस्बे जंगल की अस्मिता को लीलती सीमेंट की सु... गाँव-कस्बे जंगल की अस्मिता को लीलती सीमेंट की सुनामी से चिंतित एक सुधिमना कवि की अन्तर्वेदना ....दीर्घनिन्द्रा से ग्रस्त आदमी को जगाती हुई एक सशक्त रचना ! inder deo guptahttps://www.blogger.com/profile/11098391729771677130noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-861830830438996382013-07-08T14:22:04.783+05:302013-07-08T14:22:04.783+05:30धन्यवाद। अच्छी कविताहै।आपकी मुक्ति आदि कुछ और कवित...धन्यवाद। अच्छी कविताहै।आपकी मुक्ति आदि कुछ और कविताएं भी पढ गया हूं। अच्छा अनुभव कर रहा हूं। बधाई।<br /> दिविक रमेश Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-26938044998359014992013-07-08T07:01:55.293+05:302013-07-08T07:01:55.293+05:30vaah!! bahut umda!!vaah!! bahut umda!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-72807576519577563562013-07-07T20:31:04.660+05:302013-07-07T20:31:04.660+05:30क्योंकि शहर है कि बढता ही जा रहा है।
तभी तो विपदा...क्योंकि शहर है कि बढता ही जा रहा है।<br /><br />तभी तो विपदा का कहर बढता जा रहा है Anju (Anu) Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/01082866815160186295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-15179629009490834352013-07-07T15:50:17.936+05:302013-07-07T15:50:17.936+05:30शहर है कि बढ़ता जा रहा है--अस्तित्व बचाने के भय से ...शहर है कि बढ़ता जा रहा है--अस्तित्व बचाने के भय से ग्रस्त गाँव, कस्बा और जंगल की पीड़ा को व्यक्त करती विचारोत्तेजक कविता।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-44125030070744598232013-07-07T15:39:26.674+05:302013-07-07T15:39:26.674+05:30SACHCHAAEE KO UKERTEE HUEE AAPKEE YAH UMDA KAVITAA...SACHCHAAEE KO UKERTEE HUEE AAPKEE YAH UMDA KAVITAA HAI . PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4586136780480484719.post-51420189684095549022013-07-07T15:25:15.116+05:302013-07-07T15:25:15.116+05:30इस कविता पर मेरी टिप्पणी एक शेर में:
गॉंव गुम शह्...इस कविता पर मेरी टिप्पणी एक शेर में:<br />गॉंव गुम शह्र की ज़मीनों में<br />आदमी खो गये मशीनों में। तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.com