Sunday, June 16, 2013

अशोक आंद्रे

(तीन कवितायेँ)

 रोशनियों के मध्य

मन की ध्वनियाँ
कई बार विकृति पैदा करती हैं
और हम खोजने लगते हैं
उन तरल रोशनियों के मध्य अपनों को
जो हमारे आसपास एहसास तो देते हैं
लेकिन भयावह रूप गढ़ कर
डराते हैं हमारे समय को
जहां फिर विकराल रूप धर लेती हैं
हमारी कल्पनाएँ,
बिना सोचे-समझे उस ओर बड़ते हुए .
तब हमारी सोच को अनंतता का एहसास होता है।
लगता है शायद यहीं कहीं हमारा प्रिय
समय में गोल करते हुए
अन्धकार में छिद्र कर के
हमारे सम्मुख आ खडा हो जाएगा।
और हम उस अनंतता में हाथ हिलाते हुए
कभी अलविदा नहीं कह पायेगें।
आखिर ध्वनियाँ तो समय के ऊपर यात्राएं करती रहती हैं
उन अंधेरों में जहां एक नई खोज के लिए
ज़िंदा रह जाते हैं ब्रह्म की अविरल बहती रोशनी को
देखने के लिए हम,
क्योंकि प्रिय-
तुम्हें इसी सब के बीच तो ढूंढना है।

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जलजला
आसमान में टिमटिमाते तारों की रोशनी के मध्य
उसकी जिन्दगी की शाम में
पृथ्वी पर आया जलजला
यात्रा करता है उसके मन के भीतर फैली
पदचापों की ध्वनियों के साथ
जहां प्रकाशवर्ष को जीतने के लिए वह
आह्वान करता है
अपने अन्दर फैली दूरियों को नापने का।
और ऐसे में सोचो !
कल सूर्य ही न निकले।
लेकिन उसे हल्का सा होश हो यह सब
देखने / समझने के लिए
तब कैसा लगेगा ?
क्योंकि समय तो होगा नहीं
किसी की गति को पकड़ने के लिए।
जब जल भाप बन कर फैलने लगे
कायनात की हर स्थितियों को घेरने के लिए
और वजूद हमारा ---
हवा के बुलबुलों में तैरने लगे
क्योंकि जल तो होगा नहीं,
कैसा लगेगा उस वक्त ?
आईये देखें इसे भी एक बार
आखिर जलजला तो पृथ्वी पर आ चुका है।

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अकेला खड़ा मैं

वह मेरा शास्त्रीय दिन था उस वक्त
जब मैंने तुम्हारा साक्षात्कार करने की कोशिश की थी
तुम थी कि आँखें मूँद रही थी।
पास खड़े पेड़ के पत्ते सिहर रहे थे
जमीन पर उग आए नन्हें फूलों को उकसाने के लिए
फिर बिखर जाना उनका हवा के साथ।
उधर जमीन पर फैली हरी घास का
लहलहा उठना
एक अदृश्य बीज के पनप ने के साथ
सब कुछ इसी तरह खो जाना फिर
याद है मुझे।
आकाश में उड़ते पक्षियों को निहारते हुए -
अपनी साँसों के साथ
तुम्हारी धडकनों की आवाज भी सुन रहा था लगातार,
जो ऊपर उठती जा रही थी-
उसी जगह अकेला खड़ा हूँ मैं।
सत्य क्या है आज तक इसकी
सत्यता पर सवाल अंकित होते रहे हैं मेरे सम्मुख
क्योंकि मेरे बनाए हर सत्य
आज भी हवा में बगुले बन छितरा रहे हैं तभी तो।
हे ईश्वर !
इसीलिये मुझे उस बीज के पनप ने का रहस्य जानना है
आखिर कैसे एक दिन बिखर कर मौन हो जाते हैं वे,
न कि तुम्हारे अस्तित्व को
यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सत्य होगा
क्योंकि उस पर तो कभी मन ने कोई
सवाल उठाया ही नहीं है।

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