साकार करने के लिए
कविताएँ रास्ता ढूंढती हैं
पगडंडियों पर चलते हुए
तब पीछा करती हैं दो आँखें
उसकी देह पर कुछ निशान टटोलने के लिए.
एक गंध की पहचान बनाते हुए जाना कि
गांधारी बनना कितना असंभव होता है
यह तभी संभव हो पाता है
जब सौ पुत्रों की बलि देने के लिए
अपने आँचल को अपने ही पैरों से
रौंद सकने की ताकत को
अपनी छाती में दबा सके,
आँखें तो लगातार पीछा करती रहतीं हैं
अंधी आस्थाओं के अंबार भी तो पीछा कर रहे हैं
उसकी काली पट्टी के पीछे
रास्ता ढूंढती कविताओं को
उनके क़दमों की आहट भी तो सुनाई नहीं देती
मात्र वृक्षों के बीच से उठती
सरसराहट के मध्य आगत की ध्वनियों की टंकार
सूखे पत्तों के साथ खो जाती हैं अहर्निश
किसी अभूझ पहेली की तरह
और गांधारी ठगी-सी हिमालय की चोटी को
पट्टी के पीछे से निहारने की कोशिश करती है .
कविताएँ फिर भी रास्ता ढूंढती रहती हैं
साकार करने के लिए
उन सपनों को-
जिसे गांधारी पट्टी के पीछे
रूंधे गले में दबाए चलती रहती है.
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Sunday, August 28, 2011
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9 comments:
कवितायेँ ... यानि कलम , दर्द के अन्तः तक देखती है, स्याही में भरती है कुछ आंसुओं की महत्वपूर्ण बूंदें और एहसासों के उमड़ते सैलाब को जन जन तक पहुंचाती है..... इसी तरह आपने गांधारी के दर्द को उकेरा है
भाई अशोक जी
आपके ब्लॉग का नाम 'कथासृजन' है पर इसमें कविताएं पाकर हैरत भी होती है और सुखद अहसास भी…आपने सही कहा है कि 'कविताएं रास्ता ढूँढती हैं' रास्ता ढूँढ़ती है और हमारा पीछा करती हैं… संवेदनशून्य होते जाते व्यक्ति के भीतर संवेदना को जगाने का काम साहित्य की करता है और उसमें भी साहित्य की विधा - कविता कुछा अधिक ही…
अशोक जी ....दर्द को परिभाषित कर दिया आपने अपनी कविता में ....
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बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
प्रणाम 1 एक नया बिम्ब बनाती , एक लालग ही प्रतीक लिए . वाकई लाविताए अपना रास्ता दूद ही लेती है रचनाकार कि शुक्ष दृष्टी के सहारे . बेहद सुंदर .
बधाई !
सादर
सुभाष नीरव ने सही कहा और मैंने तुम्हे फोन पर यही कहा था कि इस ब्लॉग में केवल अपनी कहानियां दो, जबकि तुम्हारे पास कविता के लिए एक अलग ब्लॉग है. खैर, यह तो तुम्हे सोचना है, लेकिन यार गज़ब लिख दिया तुमने ---गांधारी के दर्द जिस प्रकार शब्दायित किया है वह उल्लेखनीय है. और कविता तो फिर भी अपना रास्ता खोजती ही रहेगी प्रस्फुटित होने के लिए ---वर्तमान समय की त्रासदी को अभिव्यक्त करने के लिए.
बधाई,
रूपसिंह चन्देल
बहुत सुन्दर !! कवितायेँ रास्ता ढूँढती हैं, हमसफ़र भी और मार्गदर्शक भी. कभी भी रुकती नहीं..हमेशा सही दिशा तलाशती रहती हैं.
कवितायेँ वर्तमान भी हैं और सुनहरा भविष्य भी हो सकती है.
शुभकामनायें , बहुत बहुत धन्यवाद.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
आपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
हार्दिक बधाइयाँ..आपको पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई..
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