Friday, March 14, 2014

अशोक आंद्रे

रहस्मयी परछाइयाँ

 
अँधेरे में टिमटिमाती रोशनियों में
देखता है एक बच्चे को   
जो शब्दों की रहस्मयी परछाइयों को
खंगालते हुए
साधनाओं के घेरे बनाता हुआ दिखाई देता है.
उन घेरों में-
फंसे यथार्थ को सच्चाई की
चादर पर बिछा कर वह     
उस छोटे बच्चे की आहट को
दिये का सहारा देकर
पास बुलाता है
पता नहीं वह खोया-खोया सा
क्षितिज में क्या ढूंढ रहा है
उसके सधे हुए सारे शब्द
सन्नाटा तोड़ते
उसकी उलझनों को,
बुनी हुई रस्सी की तरह
लपेटते हुये
अपने पास आने का संकेत
उछाल कर
उसकी दुविधा को
किसी अन्य ग्रह में दफन कर देता है
ताकि वह अपने छोटे-छोटे पांवों से
चलते हुए
धरती के हर कण में
जीवन रोप कर
आनंद की फुहार कर सके
ताकि वह शब्दों की रहस्मयी
परछाइयों की बदली छांट सके  
ताकि सन्यासी की थिरकन भरे आनंद को
जीवन में उतार कर
अपने समय को नई दिशा दे सके.
     ******          

10 comments:

रश्मि प्रभा... said...

आपकी रचनाएँ बहुत ही अच्छी होती हैं

pran sharma said...

seedhe - saade shabdo mein sundar
bhavabhivyakti ke liye aapko badhaaee aur shubh kaamnaa ashok ji .

vijay kumar sappatti said...

अशोक जी , आपकी इस कविता ने तो न जाने मुझे कहाँ पंहुचा दिया है ...!!
बहुत सुन्दर सर .बहुत कुछ कह दिया है , बहुत कम शब्दों में ..
बधाई
विजय

Anonymous said...

nice poems

Binu Bhatnagar

Anonymous said...

रहस्यमयी परछाइयों के वक्ष पर विजय पताका फहराने का आनंद अनुभूत करते हुए, धरती के हर कण में जीवन रोपने कि कुलबुलाहट से बेचैन आपका कवि-मन समय को दिशा देने की जब बात करता है तो कविता धन्य होती प्रतीत होती है.…… एक और सारगर्भित रचना …बधाई।
-इन्द्र सविता

Anonymous said...




Mar 15 at 10:34 PM







आदरणीय अशोक जी,
मैंने आपकी कविता ' रहस्यमयी परछाइयाँ ' पढ़ी,और फिर कई बार पढ़ी l
अनुपम अभिव्यक्ति, मनोहारी बिम्ब और जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती
आपकी यह कविता मुझे बहुत रुची l
ढेरों बधाई और सराहना स्वीकार करें l
सादर,
कुसुम वीर

Anonymous said...

bahut sunder

Harish Chandra

Anonymous said...

प्रिय श्री आन्द्रे जी

आपकी लेखनी हृदय की गहराइयों को छूती है रहस्यमयी अन्दाज़ में। अपनी बातों को शब्दों में पिरोने की कला और सीधे उसी माध्यम से आपकी लेखनी में पाठक से सम्पर्क बनाने की अदभुद क्षमता है | मुझे जितना महसूस हुआ है उस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि जीवन की रहस्यमयी परतों में रमती हैं आपकी रचनाएं | उनके परत दर परत में उलझती हैं, उसे सुलझाने का सार्थक प्रयास करती हैं | शायद ऐसे ही रचना अपनी उंचाइयों को छूने का प्रयास करते करते कब हमें उन रहस्यों में डुबो देती हैं पता ही नहीं चलता | मेरे पास शब्दों का उचित संचय न होने के कारण मैं अधिक लिखने में अपने को असमर्थ पा रहा हूँ | कृपया अन्यथा न लेते हुए मुझे अपनी रचनाओं से सदैय अनुग्रहीत करते रहे | धन्यवाद |

पी एन टंडन

Anonymous said...

आदरणीय अशोक जी,
आपने अपनी इस कविता में जिस प्रकार एक आध्यात्मिक भाव को बिम्ब- रचना के द्वारा इतनी सुन्दरता से प्रस्तुत किया है वह केवल एक समर्थ रचनाकार ही कर सकता है। बधाई।
"अँधेरे में टिमटिमाती रोशनियों में
देखता है एक बच्चे को
जो शब्दों की रहस्मयी परछाइयों को
खंगालते हुए
साधनाओं के घेरे बनाता हुआ दिखाई देता है."
शुभकामनाओं के साथ
अनिलप्रभा कुमार

Anonymous said...

good poems
N.Nirmal