वह
मेरे सपनें में
रोज मेरे सपनों में आती है वह,
किसी
उदासीन दृश्य की तरह
खनखनाती
हुई अपने सुहाग चिन्हों
को.
दर-ओ-दीवार
को छूने की बजाय
टेबल
पर पड़े मेरे पेन को
छूकर
मुस्कुराने
लगती है वह.
उसकी
लटें
बाहर
से आती हवा में
लहरा
कर
किसी
अनंत और उद्दाम कथा
को
रूपायित
करते हुये
मेरे
चेहरे को
ढांपने
की कोशिश करती है.
उसकी
आँखें
बहुत
कुछ बयाँ करने के लिये
अपनी
स्मित हंसी को
कब्र
में से निकालती हुई
प्रतीत
होती हैं.
मेरा
समग्र उसको सुनने के लिए
ठिठका
रह जाता
हैं,
मेरे
सपनों की फंतासी को
उद्ग्विन
करने की कोशिश में
वह
अपने
उन्नत अंगों से
थाप
देती है मुझे शनै:-शनै:
तभी
आकाश के स्याह बादलों
की अमर्यादित बूँदें
भिगो
जाती हैं उसके चेहरे
को,
उसको
पाने की भरपूर कोशिश
करता हूँ
मेरे
अन्दर के जागृत शैतान
की मौजूदगी में:,
यकायक
उसके हाथ मेरे गालों को
छूकर
कुछ
सन्देश देते हैं
मनो
और
मैं स्वप्न नरक से
उबर कर
जीवन
के आकाश की ऊँचाइयों
को छूने लगता हूँ.
11 comments:
गहरे खूबसूरत भाव
Hamesha Kee Tarah Aapkee Lekhni Se Ek Aur Sashakt Kavita .
Kavita Kee Sugandh Mein Chhaa Gayee Hai . Bahut Khoob !
रहस्यमयी अल्हड़ सी यह कविता अपनी अनुगूंज से आकाश की ऊंचाइयों का परिचय कराने में सक्षम है।
आदरणीय अशोक जी,
प्रणय भावों से पूरित आपकी श्रृंगारिक रचना हृदयग्राही है।
हार्दिक बधाई l
सराहना के साथ,
सादर,
कुसुम
बहत ख़ूबसूरत रचना वाह!
बीनू भटनागर
इस कविता में कवि की लेखनी का दार्शनिक पहलू नजर आता है। हर कोई मानवीय दुर्बलताओं का पिटारा होता है पर जब यह दुर्बलता सबलता का स्तम्भ बनती है तो एक नई ऊर्जा से ओतप्रोत वह इंसान उठ खड़ा होता है और दुगुन वेग से अपने लक्ष्य की ओर उन्मुख हो उठता है। इसी में जीवन की सार्थकता है।
ऐसी कविताएं पढ़ने से हम सुधि पाठकों को भी काव्यपूर्ण लहरों में झूलते हुए नई दृष्टि मिलती है। द्र्त गति से कवि की लेखनी चलती हुई हमें इसी प्रकार जीवन की गहरी सोच प्रदान करती रहे -यही कामना है।
bahut sunder samariti rachna. badhai
harish chandra
अशोक जी,
सपने ऐसे ही होते हैं। हमारे अधूरे, अपूर्ण अभावोंं और आकांक्षाओं की पूर्ति! कोमल भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति।
सादर
अनिलप्रभा कुमार
बहुत सुन्दर और गहन भाव. हार्दिक बधाई अशोक जी.
सपनों के माध्यम से अपनों की आहट का चित्रण सजीव बन पड़ा है| पढ़ते समय शायद ही कोई अपनों की यादों में खोने से चूके | उत्तम शब्दों का चयन, चित्रण को मोहक बनाने का कार्य कर गया है | सुन्दर रचना के रचयिता को बहुत बहुत साधुवाद |
पी एन टॅंडन
और मैं स्वप्न नरक से उबर कर
जीवन के आकाश की ऊँचाइयों को छूने लगता हूँ. -----
जीवन के और मनःस्थिति को शाशत्व भाव से उजागर करती दार्शनिक अनुभूति
बहुत सुंदर भाई जी
सादर
Post a Comment