Wednesday, September 11, 2013

अशोक आंद्रे

अंधड़ के पीछे
  
जब चला जाऊँगा देह के पार
मौत तब दरवाजों को पीटती
देह तक पहुंचने की
कोशिश करती रहेगी
क्योंकि रोश्नी की पहुँच  
मेरे साथ होगी
किन्तु अन्धेरा भी
चाँद की रोश्नी में कहीं
दरवाजों के पीछे छिपा
अट्टहास कर रहा होगा,
सन्नाटा उस पर लदा
कुछ लकीरों को
खींच देगा 
परती धरती पर,
जहां उड़ती धूल की चादरें
मौत के मुंह को ढक कर
किसी अंधड़ के पीछे धकेल देगी
क्योंकि मैं तो वहां होऊंगा नहीं
केवल देह होगी
इन्तजार करती हुई
क्योंकि लौटना तो मुझे ही है
उस देह के पास
उसका अंत भी तो वहीं है न
जहां हर बार लौटता हूँ मैं
अपनी आस्थाओं के साथ.
प्रभु तुम तो मात्र दर्शक दीर्धा के
मूक दर्शक ही तो हो
नाटक तो मुझे ही खेलना है न.
             ******   

8 comments:

रश्मि प्रभा... said...

तुमने तो कथा लिख दी प्रभु सबके हिस्से
अभिनय में कोई श्रेष्ठ,कोई अनाड़ी
तुमने तो उतार दिया रंगमंच पर
…. कुछ संवाद याद रहे,कुछ भूल गए
शरीर और दिल-दिमाग के मध्य बड़ी परेशानी है

Anju (Anu) Chaudhary said...

जीवन और मृत्यु के बीच का खूबसूरत द्वंद्ध

रूपसिंह चन्देल said...

नाटक तो मुझे ही खेलना है न.

एक उल्लेखनीय कविता.बधाई.

रूपसिंह चन्देल

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जीवन सा कुछ और क्‍या होगा

तिलक राज कपूर said...

एक अलग नजरिया है ईश्‍वर, देह और आत्‍मा के संबंध का। कुछ ऐसे कि
देह को छोड़कर एक लम्‍बा सफ़र
लौटकर कब मिलन हो पता ही नहीं।
रंगकर्मी हूँ मैं और दर्शक हो तुम
खेलता हूँ, जो नाटक लिखा ही नहीं।

Anonymous said...

प्रिय अशोक जी,
कविता पढ कर अनायास उभरे विचार --
एक सर्वथा ही अलग रहस्यमय लोक की यात्रा पर ले जाती है आपकी ये रचना। पिछली कितनी ही रचनाओं से अपेक्षाकृत अधिक सम्मोहक लगी. कविता पाठक से संवाद करती हुई आगे बढ़ती है ! प्रभु भले ही मूक दृष्टा हों,पर नाटक में रोल देने के परम नियंता भी वही हैं तभी तो परमात्मा कहलाते हैं.

- सविता इन्द्र

vijay kumar sappatti said...

आदरणीय अशोक जी ;
नमस्कार

आपकी कविता पढ़ी . जीवन के रहस्य से भरी हुई है . ईश्वर की जो कल्पना आपने की है वो सत्य ही है . यहाँ कवि अपने आपको ईश्वर से जोड़ देता है और एक रहस्य से भरे हुए संवाद में ज़िन्दगी की गुत्थी सुलझाता है .

आपको ढेर सारी बधाई जी .

आपका
विजय

सुधाकल्प said...

आत्मा -परमात्मा के मध्य चलते हुए मानस द्वंद को कवि ने अति दार्शनिक रूप से इस कविता में व्यक्त किया है ।

काव्य सौंदर्य के अलावा भाई जी, आपकी कविताओं को पढ़कर दिमाग के बंद कपाट भी खुल जाते हैं ,यह भी इनकी खूबी है।