Monday, March 9, 2009

संस्मरण -अशोक आन्द्रे

जब मौत से मेरा साक्षात्कार हुआ

जीवन में अक्सर कई ऐसी घटनायें घट जाती हैं जो लंबे समय तक मस्तिष्क पटल पर ज्यों - की- त्यों अंकित हो जाती हैं । ठीक इसी प्रकार की एक घटना अगस्त ,७६ के आसपास मथुरा में घटी थी , जिसे याद करके आज भी सिहर उठता हूँ ।
उन दिनों मैं पी सी एस की तैयारी कर रहा था । घर में शोर- गुल से तंग आ कर मैं एक दिन किताब ले कर यमुना के किनारे चला गया । वहां पहुंच कर मैं २५ पैसे में नाव द्वारा यमुना पार कर के दूसरे किनारे चला गया । वहां एक भग्नावशेष था जो हर साल बाढ़ के दिनों मैं डूब जाया करता था । इसलिए उसकी दीवारों पर शैवाल की - सी चिकनाहट उभर आई थी । लेकिन एकांत होने के कारण पढ़ाई के लिए सर्वथा उचित स्थान था ।
उस दिन जब मैं उस टीले पर बैठ कर पढ़ाई में व्यस्त था , तो पता नहीं कब और कहां से एक सांप का जोड़ा वहां आ कर मस्ती में झूमने लगा था । कुछ पल बीतने के बाद मेरा ध्यान उनके फूफकारने से टूट गया । मैंने देखा उनमेँ से एक अपना सर उठाए इधर - उधर लहराता हुआ क्रोध मैं फुफकार रहा था । देख कर मैंअन्दर तक सिहर गया । लगा , आज वास्तव में मैं अपनी मौत से साक्षात्कार कर रहा हूँ । घबराहट में , मैं खडा हो गया । सांप बार - बार मेरी तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहा था । लेकिन चिकनाहट होने के कारण उसकी चेष्टाएँ लगातार असफल हो रहीं थीं । जिसके कारण उसका क्रोध अपनी चरण सीमा पर जा चुका था ।
शायद मुझे अभी जिंदगी में बहुत कुछ करना है । ये शब्द मुझे बार - बार घबराहट से उबार रहे थे । इसी बीच भाग्यवश एक नाव उधर से होकर गुजरी । उस पर बैठे मल्लाह ने शायद उस दृश्य को देख लिया था । वह पास आ कर जोर - जोर से पुकारता हुआ कह रहा था ,-भैया , तुरन्त टीले के दाईं ओर आ कर पानी में छलांग लगा दो । मैं नाव ला रहा हूँ ।
मुझे तैरना भी नहीं आता था । लेकिन जीने की तीव्र चाह ने मुझे छलांग लगाने को प्रेरित किया । मैंने कुछ सोचे बिना पानी में छलांग लगा दी और मल्लाह ने मुझे बचा लिया । वह मुझे दिलासा दे रहा था , लेकिन मैं बार - बार उस और देख रहा था , जहां कुछ देर पहले मैं मौत का सामना कर रहा था । आज भी उस घटना को याद कर के मैं रोमांचित हो उठता हूँ