Monday, September 24, 2012

अशोक आंद्रे

मुद्दे
मुद्दों की बात करते-करते
वे अक्सर रोने लगते हैं.
उनका रोना उस वक्त
कुछ ज्यादा बड़ा आकार लेने लगता है
जब कटोरी में से दाल खाने के लिए
चम्मच भी नहीं हिलाई जाती उनसे,
मुद्दों की बात करते-करते
कई बार वे हंसने भी लगते हैं
क्योंकि उनकी कुर्सी के नीचे
काफी हवा भर गयी होती है
मुद्दों की बात करते-करते
वे काफी थक गए हैं फिलहाल
बरसों से लोगों को
खिला रहे हैं मुद्दे
पिला रहे हैं मुद्दे
जबकि आम आदमी उन मुद्दों को
खाते-पीते काफी कमजोर
और गुस्सैल नजर आने लगा है
मुद्दों की बात करते-करते
उनकी सारी योजनाएं भी साल-दर-साल
असफलताओं की फाईलों पर चढी
धूल चाटने लगी हैं
जबकि आम आदमी गले में बंधी
घंटी को हिलाए जा रहा है
मुद्दों की बात-करते
उन्हें इस बात की चिंता है कि
आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
आम लोगों की भूख को कैसे
काबू में रखा जा सकेगा ?
मुद्दों की बात करते-करते
वे कभी-कभी बडबडाने भी लगते हैं कि
उनके निर्यात की योजना
आयात की योजना में उलझ गयी है
रुपये की तरह हर साल अवमूल्यन की स्थिति में खडी
उनकी राजनीति लालची बच्चे की तरह लार टपका रही है
आजकल मुद्दे लगातार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं .
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Saturday, July 7, 2012

अशोक आंद्रे


             उम्मीद
 
जिस भूखंड से अभी
 
रथ निकला था सरपट
 
वहां पेड़ों के झुंड खड़े थे शांत,
 
नंगा कर  रहे थे उन पेड़ों को
 
हवा के बगुले
 
मई के महीने में.
 
पोखर में वहीं,
 
मछली का शिशु
 
टटोलने लगता है माँ के शरीर को.
 
माँ देखती है आकाश
 
और समय दुबक जाता है झाड़ियों के पीछे
 
तभी चील के डैनों तले छिपा
 
शाम का धुंधलका

उसकी आँखों में छोड़ जाता है कुछ अन्धेरा .
 
पीछे   खड़ा बगुला चोंच में दबोचे
 
उसके शिशु की
 
देह और आत्मा के बीच के
 
शून्य को निगल जाता है
 
और माँ फिर से
 
टटोलने लगती अपने पेट को.
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        नदी 
 
 
नदी के उद्गम स्थल पर शोर नहीं होता है.
क्योंकि सारा शोर तो 
नन्हीं घास के बीच छिपा रह कर 
सृजन की पहली सीढ़ी को छूने की 
कोशिश कर रहा होता है,
नहीं तो जंगल में सृजन कैसे कर पाएगी नदी ?
 
हरियाली लिए किनारे 
जो नदी को अपनी ओर
आकर्षित करते हैं लगातार 
उसी आकर्षण की पूर्णता में ही तो,
पूरा वातायन संगीतमय हो उठता है.
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Sunday, March 18, 2012

अशोक आंद्रे

दर्द


दर्द बहुत गहरा होता है -


समुद्र को नापा जा सकता है


आकाश को भी प्रकाशवर्ष से


जोड़ा जा सकता है,


लेकिन दर्द-


उसकी थाह नहीं होती है,


उसकी डूब में कोई आधार नहीं मिलता ,


इसकी गहराई विशाल होती है


ये जीवन की


जड़ों के बीच


अपना स्थाई घर बना लेती है


तभी तो मनुष्य


उसे थामने की कोशिश में


ता-उम्र


उसकी गहराई में


गोता लगाता रहता है .


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Saturday, February 11, 2012

अशोक आंद्रे







अनाम रहस्य


जिसे बिना देखे
चले जाते हैं दूर
जो कुछ भी है उनके पास
उसे, स्वयं को मौन रख कर
उसी के सहारे
अपने मौन में ही
किसी अनाम को
स्थापित करते हुए
दिखाई देते हैं.

वहां कुछ भी
समाप्त नहीं होता है.
उसकी चुप्पी
आकाश में उड़ते
पक्षी की तरह,
कोमलता का एहसास कराते हैं.
कई बार
उसके अन्दर बहता तरल
समय को छूता हुआ
आगे निकल कर
नदी का रूप ले लेता है.
लेकिन नदी -
कभी लौटती नहीं
हाँ, नन्ही चीटियाँ जरूर लौटती हैं.
एक छोटा सा घेरा बनाती हुई
ताकि मौत के रहस्य को
उदघाटित किया जा सके.
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जंगल में

जंगल में
छोटे से आले के अन्दर
शांत बैठी हुई मूर्ति
सिवाय आँखों के
सब कुछ कह जाती है.

अपने ही ध्यान में
खोई हुई वह,
किसी मंदिर की
मूर्ति जैसी लगती है,

बस प्रणाम करो और...
फिर कहीं दूर चले जाओ.

क्योंकि वहां खामोश
पेड़ के,
पत्तों की
सरसराहट,
किसी अज्ञात का डर,
पैदा करते हैं.

अभी तुम भी
चुप्प रहो
पता नहीं-
हो सकता है यह
इस देवी का
कोई अज्ञात रहस्य हो

तभी तो
सभी चर-अचर
नीले आकाश को देखते हैं सिर्फ ,
सिवाय... उस देवी को.
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