Monday, September 24, 2012

अशोक आंद्रे

मुद्दे
मुद्दों की बात करते-करते
वे अक्सर रोने लगते हैं.
उनका रोना उस वक्त
कुछ ज्यादा बड़ा आकार लेने लगता है
जब कटोरी में से दाल खाने के लिए
चम्मच भी नहीं हिलाई जाती उनसे,
मुद्दों की बात करते-करते
कई बार वे हंसने भी लगते हैं
क्योंकि उनकी कुर्सी के नीचे
काफी हवा भर गयी होती है
मुद्दों की बात करते-करते
वे काफी थक गए हैं फिलहाल
बरसों से लोगों को
खिला रहे हैं मुद्दे
पिला रहे हैं मुद्दे
जबकि आम आदमी उन मुद्दों को
खाते-पीते काफी कमजोर
और गुस्सैल नजर आने लगा है
मुद्दों की बात करते-करते
उनकी सारी योजनाएं भी साल-दर-साल
असफलताओं की फाईलों पर चढी
धूल चाटने लगी हैं
जबकि आम आदमी गले में बंधी
घंटी को हिलाए जा रहा है
मुद्दों की बात-करते
उन्हें इस बात की चिंता है कि
आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
आम लोगों की भूख को कैसे
काबू में रखा जा सकेगा ?
मुद्दों की बात करते-करते
वे कभी-कभी बडबडाने भी लगते हैं कि
उनके निर्यात की योजना
आयात की योजना में उलझ गयी है
रुपये की तरह हर साल अवमूल्यन की स्थिति में खडी
उनकी राजनीति लालची बच्चे की तरह लार टपका रही है
आजकल मुद्दे लगातार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं .
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