Thursday, August 25, 2016

अशोक आंद्रे

वह मौन ---!

आसुओं का सैलाब
निकल पड़ता है
कहीं भी यात्रा पर,
भावनाओं का समंदर
अंतरतम में
छिपा रह कर करता है वास,
सृष्टि कर्ता ने
नर की खोखली व्यवस्था में
'' और '' को जोड़
माँ की
सुन्दरतम कल्पना के संग
नये धरातलों का
कर दिया है निर्माण.

सृष्टि ने इसी '', '' के साथ
हलचलों का विस्तार कर
जन्मा दिया खूबसूरत भविष्य को
कालांतर में
अपनी मौन स्वीकृति देकर
सृष्टि के हर अध्याय को देने लगी विस्तार

सीधी-सच्ची आ'' और ''
आज भी
नारी स्वरूपा बनी माँ
स्वयं की यात्रा को करती है
व्यवस्थित,
सृष्टि की सुन्दरतम रहस्य को
छिपाये हुए अपने भीतर.
               ******