Sunday, June 14, 2009

कविता - अशोक आंद्रे

पता नहीं मैं कहाँ आ गया हूँ ?
क्यों कि आना अपने हाथ में नहीं होता है ।
लोग कहते हैं कि आना ही पड़े तो ,
बिना आवाज किए आना चाहिए
जैसे हवा नासा में घुस जाती है
जैसे दहशत पूरे शरीर में समा जाती है
जैसे पानी में जीव आ जाता है
जैसे रात होते ही सपने किसी तूलिका में घुस आते हैं
और माँ के आनंद में जैसे विश्वास घुस जाता है
तब पता चलता है कि हम कहाँ आ गए हैं ।