दर्द
दर्द बहुत गहरा होता है -
समुद्र को नापा जा सकता है
आकाश को भी प्रकाशवर्ष से
जोड़ा जा सकता है,
लेकिन दर्द-
उसकी थाह नहीं होती है,
उसकी डूब में कोई आधार नहीं मिलता ,
इसकी गहराई विशाल होती है
ये जीवन की
जड़ों के बीच
अपना स्थाई घर बना लेती है
तभी तो मनुष्य
उसे थामने की कोशिश में
ता-उम्र
उसकी गहराई में
गोता लगाता रहता है .
###
10 comments:
बहुत सही कहा आपने 'दर्द जीवन की जड़ों के बीच अपना स्थाई घर बना लेता है'।
मुस्कराना कुछ कठिन होता नहीं मैं जानता हूँ,
दर्द अधरों से उतर जाये तो तुम भी मान लोगे।
भाई अशोक जी, यूं तो मैं कविताएं अधिक नहीं पढ़ती… आपकी यह दर्द वाली कविता असर कर गई मुझ पर… अच्छी लगी…
प्रिय अशोक जी ,
कविता अच्छी लगी ....सरल ...बिना अधिक रहस्यात्मक स्ट्रोक्स के ..
My reaction is as follows :
दर्द को परिभाषित कर आपने कविता के दिल को धड़कन दी है ...जैसे जीवन जड़ों को परिसिंचित करते दर्द की गुत्थी
का एक सिरा पाठकों को पकड़ा दिया हो ..
-Inder
On Mon, 19 Mar 2012 11:33:45 +0530 wrote
ASHOK JI , AAPNE SEEDHE - SAADE
SHABDON MEIN DARD KEE JO SAHEE
PARIBHASHA KEE HAI USNE KAVITA KO
CHAAR CHAAND LAGAA DIYE HAI .
डबडबाई आँखों से न मुझे बहलाओ,जिंदगी
टूटते तारे का दर्द मैं भी जानती हूँ ,जिंदगी |...अनु
भाई, बड़ी सहज और मन को छूने वाली कविता.
आजकल कुछ अधिक ही भावुक हो रहे हो...कभी दर्द की बात करते हो तो कभी मुद्दों की. दोनों ही कविताएं पसंद आयीं. आगे भी ऎसी ही कविताओं की अपेक्षा है तुमसे जो मन की गहराई में उतर जाएं.
चन्देल
बहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
हर इंसान का दर्द इस कविता से जुड़ा है ,तभी एक -एक शब्द हृदय में उतर गया |
दर्द की गहराई नापता हर इंसान और गहरे दर्द में उतरता जाता है, जीवन भी शायद यही है. बहुत अर्थपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.
Sundar!
Post a Comment