मुद्दे
मुद्दों की बात करते-करते
वे अक्सर रोने लगते हैं.
उनका रोना उस वक्त
कुछ ज्यादा बड़ा आकार लेने लगता है
जब कटोरी में से दाल खाने के लिए
चम्मच भी नहीं हिलाई जाती उनसे,
मुद्दों की बात करते-करते
कई बार वे हंसने भी लगते हैं
क्योंकि उनकी कुर्सी के नीचे
काफी हवा भर गयी होती है
मुद्दों की बात करते-करते
वे काफी थक गए हैं फिलहाल
बरसों से लोगों को
खिला रहे हैं मुद्दे
पिला रहे हैं मुद्दे
जबकि आम आदमी उन मुद्दों को
खाते-पीते काफी कमजोर
और गुस्सैल नजर आने लगा है
मुद्दों की बात करते-करते
उनकी सारी योजनाएं भी साल-दर-साल
असफलताओं की फाईलों पर चढी
धूल चाटने लगी हैं
जबकि आम आदमी गले में बंधी
घंटी को हिलाए जा रहा है
मुद्दों की बात-करते
उन्हें इस बात की चिंता है कि
आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
आम लोगों की भूख को कैसे
काबू में रखा जा सकेगा ?
मुद्दों की बात करते-करते
वे कभी-कभी बडबडाने भी लगते हैं कि
उनके निर्यात की योजना
आयात की योजना में उलझ गयी है
रुपये की तरह हर साल अवमूल्यन की स्थिति में खडी
उनकी राजनीति लालची बच्चे की तरह लार टपका रही है
आजकल मुद्दे लगातार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं .
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13 comments:
जि़न्दगी में ऐशो-इशरत का अगर सामान हो
सोचता है कौन मुद्दों पर यहॉं कुछ बात हो ।
सहमत, अच्छी रचना है।
बेहद खूबसूरती से राजनीति ,सभी नेता और मंत्रियों पर निशाना साधा है आपने ....
मुद्दे उठाने वाले नहीं थकते .. पकाते रहते हैं नए मुद्दे ... पैदा करते हैं नए मुद्दे ताकि उनकी दूकान चलती रहे ... और मुद्दों को झेलने वाले ... सभी पस्त हो जाते अंत में ...
बहुत ही प्रभावी और पेनी नज़र से समाज में आए इस बदलाव को उठाया है आपने ...
लाजवाब रचना ...
mudde ki baat karun...
to rachna bahut pyari ban padi hai...
ek dum aaj ke yathart ko dikhati hui
abhar:)
AAPKEE LEKHNEE MEIN DHAAR HAI .
IS SAAMYIK KAVITA KE LIYE AAPKO
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
मुद्दे की बात तो यही है कि नेताओं द्वारा मुद्दे बनाए जाते हैं ताकि आम आदमी को उसमें उलझा कर अपनी राजनीति कर सके, और हर बार एक नया मुद्दा... पर अब मुद्दे भी कहाँ से आए? सालों से सवाल वही, मुद्दे वही, नेता वही. सच में जैसे मंदी के दौर से गुजर रहे हैं मुद्दे. बहुत सटीक, बहुत अच्छी रचना, बधाई.
वाह अशोक,बहुत ही व्यंग्यमय धारदार और लाजवाब कविता. इस नवीनतम कविता के लिए बधाई.
चन्देल
एक अच्छी कविता !
कवि ने राजसत्ता के लोभी भंवरों पर बड़ा तीखा कटाक्ष किया है जिन्होंने एक कुशल अभिनेता के रूप में जनता को भ्रमित करने की भरसक कोशिश की |भावुक ह्रदय हाहाकार कर रहा है फिर भी भविष्य के प्रति यथार्थता के पट खोलते हुए कवि आशान्वित है कि सजगता और जागरूकता के आगे नेताओं को घुटने टेकने ही पड़ेंगे ---इसके लिए इशारा ही काफी है --क्योंकि उनके मुद्दे तो लगातार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं |व्यंग के साथ -साथ दिशा बोधक गहन कविता है |
मुद्दे का मुद्दा उठा कर, मुद्दों में उलझे जनमानस को दिशा दी है आपने. इस कविता में परिलक्षित आम आदमी की छटपटाहट....
बेचैनी.... तड़प ...आक्रोश और बेबसी शायद समाज की कुम्भकर्णी नींद की छाती पर क्रांति के मुद्दे का बीज रोप दे. आभार .
Shubh Kamanae
-Inder Savita
बहुत बढिया...
सटीक रचना...सही मुद्दा उठाया है...
सादर
अनु
आपकी कविताएं पढ़ गया हूं। आप सर्थक ढंग से लगातार सॄजनशील हें, यह देखकर बहुत अच्छा लगता हॆ। आपकी कविताएं मर्मस्पर्शी हॆं ऒर भेदक भी। मुक्ति, मुद्दे, साक्षात्कार, नारी, खून,नन्हीं कोंपलें जॆसी कविताएं भीतर तक छू गईं। बधाई।--दिविक रमेश
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