Thursday, October 24, 2013

अशोक आंद्रे

ओ बेसुरी ताकतों
 खामोश
समय की धूल में
खोये सपनो में रहने वाले
कब्र से उठ खड़े हो गये हैं
जिन्हें उनकी सीमा में रख कर
चंद लोगों ने
हाथ बढ़ा कर बाँध दिया
कब्र में दस्तरखान लगा
बिठा दिया था उन्हें.
चांदनी रात में
एक मोम बत्ती की रोश्नी की
लो का सहारा मिल गया है 
 अपनी बीती जिन्दगी की इमारत को
खड़ा करने की ताकत
विशवास नहीं तो आओ
उस मरघट की तरफ.
जहां हलचल है
उड़ती धूल है
ताकत है समय को बाँधने की.
आखिर तुमने तो सिर्फ
जीवन भर
मरघट ही तो तैयार किये हैं
बेबस जिंदगियों को
जमींदोज करने के लिए.
ओ बेसुरी ताकतों!

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नन्ही कोपलों की

 ओ मेरे सात रंगों के बेशर्म धागों
क्यों मन की सोच को उलझा देते हो  
इसीलिए मेरे जीवन के सारे स्पर्श/गीत
रेतीले ढूहों में धसने लगते हैं
अँधेरा स्पर्श तो करता है
लेकिन मौन को अधिक गहरा कर देता है
अनंत की गहराई भी कमजोर पड़   जाती है
तभी तो रोश्नी से लबालब उसका कमरा
अंधेरों का समूह तैयार कर देता है
ये सातो रंग
फिर भी उलझी डोर के घेरे बनाकर
उसके चारों ओर फैला देते हैं
उसकी सोच हार नहीं मानती
उसी में से दुरूहता को छांट
नन्ही कोपलों के गीत गाने लगती है.

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साक्षात्कार
वह खुश था कि
उसे मौत से साक्षात्कार करने के लिए
निमंत्रण मिला था
आखिर उसका इन्तजार जो
आज ख़त्म हो रहा था
जानता था कि वह
मौत नहीं
बल्कि मुक्ति का द्वार है
जहां से पूरी सृष्टि को निहारने
स्वतः स्फूर्त प्रेरणा का श्रोत्र होगा
तब झूमता हुआ कहेगा,
ओह तुम कितनी खूबसूरत हो प्रिय
इसी के लिए तो उसने
मन के सारे कपाट खोल रखे थे

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8 comments:

Anonymous said...

आपकी सृजनात्मक क्षमता अतुलनीय है । मैं सौभाग्यशाली हूँ आपका पाठक हो कर ।
पी न टंडन

Anonymous said...

प्रिय अशोक जी
स्वत: स्फूर्त प्रतिक्रियाएं भेज रहा हूँ --


बेसुरी ताकतों के विरुद्ध बाहर भीतर की बेचैनी उजागर करती यह कविता, समाज में अंतर्निहित विरूपता से रूबरू करती प्रतीत होती है।


हार नहीं मानना और नन्ही कोंपलों के गीत गुनगुनाना …… अंधेरों से सामना करने की हिम्मत बंधाती एक प्रेरणाप्रद कविता …बधाई।


हो कितनी सुंदर मृत्यु तुम, भय कैसा हो मुक्ति द्वार
परिभाषित की तुमने मृत्यु, जीवन परिभाषा रही उधार :)

तीनों कविताओं में अनुस्यूत आपका नैसर्गिक कथातत्व इनकी ताकत है
-सविता इंद्र


Anonymous said...

किस रचना को कम कहूँ - भावों की उत्कृष्ट प्रस्तुति.
रश्मि प्रभा

Anonymous said...

आदरणीय अशोक जी,
कविताएं बहुत सुन्दर हैं। इनकी गहन दार्शनिकता और भाषा का गाम्भीर्य,सम्भ्रांतता मन को बांधती है।कहीं उदास भी करती है।
आपने मेरी कहानी "सफ़ेद चादर" पर शब्दांकन पर जो टिप्पणी लिखी थी, उसके लिए विनम्र आभार।
मैने अपनी ओर से उसका उत्तर भी लिखा था पर शायद मै "फ़ेसबुक, ट्विटर" आदि पर नहीं हूं तो उत्तर वापिस नहीं गया।

एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि कुछ लोग (जैसे आप) इतना अच्छा लिखते हैं पर नाम की ज़्यादा चर्चा क्यों नहीं होती जबकि कुछ तुककारॊं, ब्यौरे लिखने वाले कवि, लेखक हर जगह छाये रहते हैं, मान पुरस्कार भी मिलते रहते हैं। कोई साजिश है या रचनाकारों का संकोच?
आशा है आप सानन्द होंगे।
अनिलप्रभा

Anonymous said...

अशोक,
तीनों कविताएं पढ़ गया. तीनों ही अच्छी हैं----खासकर पहली को बहुत अच्छी कहूंगा. इन्हें भी संकलन में शामिल कर लो.

चन्देल

Anonymous said...

प्रिय अशोक जी , कविताएं अच्छी लगीं। आपकी वैचारिक प्रखरता वापस आ रही है , देखकर अच्छा लगा।
शैल अग्रवाल

सुधाकल्प said...

तीनों ही कविताएं अनूठापन लिए काव्यात्मक सौंदर्य से भरपूर कहीं न कहीं कुछ संकेत करती नजर आती हैं और सुधि पाठक को अपनी सोच की तलवार पैनी करनी पड़ती है । सविता इंदु जी के विचारों से में काफी हद तक सहमत हूँ .।
ओ बेसुरी ताकतों
-कविता में उन शक्तियों के विरुद्ध कवि का आक्रोश गूँज रहा है जो अपना राग अलापती रहती हैं और उसकी पूर्ति के लिए दमन चक्र चलाने में नहीं हिचकतीं । चेतावनी देते हुए कविता सहजता से आगे बढ़ जाती है कि यह दमन ज्यादा दिन चलने वाला नहीं । समय की धड़कनों को सुनना बेसुरी ताकतों के लिए अनिवार्य हो गया है . । शोषित वर्ग शोषण करने वालों से लोहा लेने को उठ खड़ा है । सुन्दर सन्देश !

नन्ही कोंपलों की
कवि की कल्पना और उसकी दार्शनिकता के मिले जुले स्वर सुनाई देते है।उसके अनुसार यह जिंदगी इन्द्रधनुषीय रंगों से सारोवार बहुत खूबसूरत है . पर इंसान अपनी सोच के अनुसार इसमें अवसाद का ग्रहण लगा देता है और उसके सुनहरे पल तिरोहित हो जाते हैं । इस स्थति से उबरने के लिए यदि रूह ज़रा भी छटपटाये तो जिंदगी की खूबसूरती हाथ पसारे अवश्य उसका स्वागत करती है .

साक्षात्कार
मृत्यु चिरंतन सत्य है ,शारीरिक -मानसिक व्यथा से मुक्ति है पर इस कविता से एक और सत्य से साक्षात्कार हुआ है । मृत्यु प्रिय की उस खूशबू को ले जाने में समर्थ नहीं हुई है जो चाहने वाले के इर्द गिर्द लिपटी रहती है, जिसमें डूब कर वह जिन्दगी गुजार देता है ।मार्मिक अभिव्यक्ति !

अगली कविता के इन्तजार में

sunil gajjani said...

namaskar
behtreen kavitaae hai , jo man ko sparsh karti hai . ek nayi dishaa pradan karti hai . sadhuwad
saadar