यादों के मकान
जब से यादों के मकान बनाये हैं
उसमें सब कुछ होने के बावजूद
हर वक्त
रोशनदान की कमी महसूस होती है
तभी से एक बैचेनी का सैलाब
पूरे समय
घेरे रहती है उसको
और जिन्दगी की सुभह को
शाम में तब्दील कर देती है
वहां सूरज तो है
मात्र लाली लिए हुये
सब कुछ राख कर देना चाहती है
जो बदनुमा दाग की तरह
उसकी सिहरन भरी जिन्दगी में
सब कुछ बयाँ कर जाता है
जिसे सूरज की रोश्नी में
हमेशा के लिए भूलने की
कोशिश करता है
जबकि रोशनदान तो फिर भी दिखाई नहीं देता है.
उधर घर के पास बैठा
बूढ़ा भी तो
सुभह उठते ही
रात की कालिमा से
लदे दाग को झाड़ने लगता है
वह जानता है कि दाग तो हट नहीं पाते
किन्तु उसके हाथ
जरूर लाल होकर
ताजगी का अहसास करा देते हैं
उसे देख वह भी
रोशनदान के न होने के
दुःख को भूल जाता है
फिर अपनी यादों के मकान में
रोशनदान की कल्पना को स्थापित कर
सुभह की ताजगी को महसूस करने लगता है
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14 comments:
बेहद उम्दा प्रस्तुति जीवन जीने को बहाने तो चाहिये ही होते हैं
ASHOK JI , AAPKA BYAAN KHOOB HAI !
SUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE HADIK BADHAAEE . AAPKEE YE PRARAMBHIK PANKTIYAN MAN PAR ANKIT HO GAYEE HAIN -
JAB SE YAADON KE MAKAAN BANAAYEN HAIN
USMEIN SAB KUCHH HONE KE BAAVJOOD
HAR WAQT
ROSAN DAAN KEE KAMEE MAHSOOS HOTI
HAI
यादों का मकान
बिना रोशनदान
बहुत कुछ दे जाता है
हँसी,उदासी,बचपन, पुकार,
पाने का सुख, खोने का दुःख
… कभी उमस लगती है
कभी हवा
कभी सिहरन सी होती है
……बहुत कुछ बहुत कुछ
उधर घर के पास बैठा
बूढ़ा भी तो
सुब्ह उठते ही
रात की कालिमा से
लदे दाग को झाड़ने लगता है
बहुत खूब।
सादर
तिलक राज कपूर
यादें भी तो रोशनदान ही हैं , जाने कब वो खिड़की खुल जाए, क्या- क्या बहता चला आये/ विचारों के झंझावात के साथ। । मैं डूब जाऊं , भूल जाउं खुद को , वक्त को ।नहीं कर सकती ऐसा। वक्त तो हर क्षण अपना दाय मांगता है। इसलिए मेरी वो खिडकी आजकल अक्सर बंद रहती है । वक्त की बड़ी कमी है ।
सादर
इला
यादों के मकान में प्रवेश करना कभी- कभी बहुत ही भयावह होता है। जकड़ लेता है अपने अन्धेरे और सन्नाटे में। संवेदन शील हृदय तो हर जगह जाएगा ही, दुखित होगा और फिर लौट भी आएगा "
फिर अपनी यादों के मकान में
रोशनदान की कल्पना को स्थापित कर
सुभह की ताजगी को महसूस करने लगता है।
सकारात्मक अंत देकर आपने कविता को सुन्दर बना दिया।
अनिलप्रभा कुमार
जिन्दगी के धरातल को तलाशती यह कविता स्वयं में एक रोशन दान है, उन सुधीपाठकों हेतु, जिन्हें अतीत के बदनुमा दाग गाहे-बगाहे व्यथित करते रहते हैं
इंद्र सविता
भाई आंद्रे जी प्रतिक्रिया में देरी का कारण यह नहीं कि मैं व्यस्त हूँ बल्कि इसका अभ्यस्त हूँ |इस सुन्दर रचना पर यही कह सकता हूँ कि यादों को कुछ अंधेरे और कुछ उजाले मिल कर बनाते हैं | अधिकतर यादें इतनी धुंधली होती हैं कि रोशनदान ही उन यादों को रौशन कर सकता है अन्यथा मुख्य द्वार तो उसका आभास ही दे पाता है | इस कविता से थोड़ी मिलती जुलती दो पंक्तियाँ मैने कभी लिखी थी जो मैं समझता हूँ कि यह मेरी सर्वश्रेष्ठ रचना है-मैं नहीं जानता कौन छवि स्थाई बन सकती है प्रिये,जो चित्र कैमरे में उतरा या जो नैनों ने दिल में लिये |अपनी सुन्दर रचना मुझे भेजने के लिये धन्यवाद |
पी एन टण्डन
भावनापूर्ण अभिव्यक्ति.
बीनू भटनागर
Apr 16 at 11:39 PM
आदरणीय अशोक जी,
अभी मैंने आपकी कविता 'यादों के मकान' पढ़ी l
मन को छूती हुई बेहद सुन्दर कविता लिखी है आपने l
सच में, इस ज़िन्दगी में अनगिनत यादों के मकान बन जाते हैं,
लेकिन उसमें ऐसा कोई भी रौशनदान दिखाई नहीं देता, जहाँ से
खुशियों की मलयित समीर का कोई झोंका हमें आनंद से आप्लावित कर दे l
बहुत बधाई और अशेष सराहना के साथ,
सादर,
कुसुम वीर
मन की बेचैनी को झलकाती कविता ...बहुत खूब
फिर अपनी यादों के मकान में
रोशनदान की कल्पना को स्थापित कर
सुभह की ताजगी को महसूस करने लगता है-------
जीवन में घर,मकान की कल्पना तो सब
कोई करता है पर रोशनदान की कल्पना
कोई नहीं करता--
रोशनदान सुख का प्रतीक है
बहुत सार्थक सुन्दर कविता
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आशावादी दृष्टिकोण लिए इस भाव पूर्ण कविता 'यादों के महल'से जीवन का सत्य झाँकता नजर आता है । जीवन दायिनी रोशनी के बिना स्मृतियों विशाल भंडार भी अंधकार में डूबा नजर आता है फिर भी वे जीवन का अभिन्न अंग हो जाती हैं और एक समय ऐसा आता है जब प्रिय की यादें संजीवनी का काम करती हैं और टूटा हृदय उससे ऊर्जा पा फिर से स्पंदित हो उठता है।
भावाव्यक्ति के साथ -साथ कविता का काव्यसौंदर्य देखते ही बनता है।
अशोक जी आपकी हर कविता अपने नए रूप में प्रकट होती है और कल्पना की उड़ान चकित कर देती है । बधाई है ।
aadarneey ashok ji ,
yaado ke makaan kavita ,wakayi me hame yaado me hi le jaati hai .
itne sundar shabdo ke dwara aapne kahani me har ek rang ko bhar diya hai . mera salaam kabul kare.
dhanywaad
aapka
vijay
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