शब्द
खोज करते शब्द
फिसल जाते हैं
अक्सर चादर ओढ़
तैरने की नाटकीय
कोशिश करते
समय की लहरों पर
लहराते परों की लय
पर
संघर्षों का इतिहास
बाँचने लगते हैं तब
फिर कैसे डूबने
लगते हैं शब्द ?
साहिल की दहलीज पर,
उड़ेलते हुये भावों
को
पास आती लहरों को
छूने की खातिर-
जब खोजने लगता है
अंतर्मन
तह लगी वीरानियों
में
क्षत-विक्षत शवों
की
पहचान करते हुये.
मौन के आवर्त तभी
खडखडाने लगते हैं
जहाँ
साँसों के कोलाहल
को
धकेलते हुये पाशर्व
में
खोजता है तभी नये
धरातल
चादर खींच शब्दों
की
करता है जागृत
शायद शब्दों को
अनंत स्वरूप देने के लिए.
ताकि भूत होने से
पहले
वर्तमान को भविष्य
की ओर जाते हुये
नई दिशा मिल सके
शब्दों को !
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10 comments:
डूब जाएँ या तिनके का सहारा ले निकल आयें
दावानल हो या रेगिस्तान
शब्द पा ही लेते हैं अर्थ !!!
बहुत गहरे शब्द ,बहुत सुन्दर कविता!
बीनू भटनागर
समय की लहरों पर
लहराते परों की लय पर
संघर्षों का इतिहास बाँचने लगते हैं तब
फिर कैसे डूबने लगते हैं शब्द ?
बहुत खूब आन्द्रे जी।
आपकी लेखनी से उपजी एक और उत्तम कविता ` शब्द `.
बधाई और शुभ कामना।
शब्द ही हैं साहिल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (06-07-2017) को "सिमटकर जी रही दुनिया" (चर्चा अंक-2657) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अंतर्मन के भावों की गहनता को स्वरुप देने के लिए शब्दों को एक रूप धरना ही पड़ता है ताकि जी सके अनंत काल तक. स्वयं की पड़ताल करती बहुत उम्दा रचना. बहुत बधाई अशोक जी.
//वर्तमान को भविष्य की ओर जाते हुये, नई दिशा मिल सके, शब्दों को !// मन की अतल गहराइयों में कवि की बेचैन पीड़ा को अर्थ और दिशा देने हेतु अन्ततः शब्द जाग उठते हैं। आपकी कविताओं का अंत, अक्सर सकारात्मकता लिए होता है, जो स्वर्णिम भविष्य के प्रति आशान्वित करता है। सार्थक सृजन। आन्द्रे जी बधाई।
इन्दर सविता
'शब्द' कविता पढ़ी और उस पर की गई आठ विद्वतजनों के विचार भी । कह सकता हूँ कि आपकी रचना शब्द मेरी अनुभूतियों को निःशब्द कर देते हैं । लहरों के धरातल पर फिसलती भावनात्मतक अभिव्यक्ति अप्रतिम है । बहुत बहुत बधाई ।
प्रेम एन टंडन
आदरणीय अशोक जी,
बहुत सुन्दर मर्म स्पर्शी कविता।
गहरे भावों को अंतर की गहराइयों से उकेरकर
उन्हें भविष्य के उजाले की ओर निःसृत करती
संवेदन पूर्ण रचना।
हार्दिक बधाई एवं सराहना स्वीकार करें।
कुसुम वीर
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