गुब्बारे में कैद सपनें
कोने में बैठी उस
लड़की को
हमेशा
ख़ामोशी के
गुब्बारे फुलाते हुये देखा है
उस गुब्बारे में
उसके सपने क्यूँ कैद रहते
हैं
यह हर प्राणी की समझ से परे
सिवाए ख़ामोशी के खामोश ही
रहते हैं
लोग गुब्बारे में कैद
उसके सपनों में
एक बिंदिया चिपका कर
उसे हसाने की असफल चेष्टा करते हैं
लड़की फिर भी खामोश रहती है
कैदी सपने
उसकी आँखों में छिपे दृश्यों को
उकेर नहीं पाते
उसके अन्दर आग की चिंगारी
निरंतर बडवानल की तरह सुलगती रहती है
जबकि वह कई बार
अपने सपनो से बाहर आने की कोशिश करती
है
लड़की सामने पेड़ के ऊपर
हिलते पत्तों को देखती है चुपचाप
सोचती है कि इन पत्तों की तरह
उसके सपनों पर लहराते दृश्य
क्यूँ नहीं कोई हरकत कर पाते ?
आखिर उसके विशवास क्यूँ डगमगाते हैं
तभी हवा परदे हिलाती
उसके कानों में कुछ
गीत गाती चली जाती है
तभी महसूस करती है कि
उसके सपनें कमल की तरह
समय की लहरों पर
कुछ शब्द उकेरने लगते हैं
गुब्बारा उसकी खामोशी के सूखे पत्तों
का
एक नया वितान बना
प्लेटोनिक प्यार के पन्नों को चलायमान करता है
आखिर सूखे पत्तों पर तो ही
शब्दों का जाल रच कर
कोई लड़की
संगीत की सत्ता तैयार करती है
जानती है कि
उसकी सोच के सारे रास्ते
इसी सत्ता के माध्यम से
जिन्दगी
के बंद दरवाजों को
खोलने में सक्षम होंगे
जहां से
अपनी मंजिल तय करनी है
तभी वह
गुब्बारे में कैद
अपने सपनों को
कोई दिशा दे पायेगी.
********
10 comments:
खुद सी लगी वो खामोश लड़की - बाह्य बोलता प्रतीत होता है,अंतर की ख़ामोशी का अनुमान कर पान सम्भव नहीं - अनुमानित श्रृंखला से बहुत दूर है मेरा गंतव्य,बिल्कुल अज्ञात !!!
bhavabhivyakti ati marmik hai , kalkal kartee sarita kee tarah .
kavita likhne kaa aapkaa andaaz
anukarneey hai .
लगता है हमारे कहीं आस-पास है वो लड़की, जिसके सपने कैद हैं गुब्बारे में। …और संगीत की सत्ता पर उड़ता हुआ गुब्बारा अज्ञात दिशा की ओर ……. पाठकों के हृदय में उन सपनों के प्रति सहानुभूति जगाने में सक्षम है आपकी लेखनी।
-सविता-इन्द्र
अति मार्मिक!
यार, बहुत ही अच्छी कविता लिख डाली. परसों कॉफी होम में लेते क्यों नहीं आए थे? सुनकर और अधिक अच्छी लगती.
बधाई,
रूपसिंह चन्देल
न जाने कितनी लडकियाँ यूँ चुपचाप अपने सपने बुनती है पर कुछ ही अपने सपनों की आज़ादी की राह तलाश पाती हैं. भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई.
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना।
वाह.
पता ही नहीं चलता कि कविता पढ़ रहा हूं या आप कहानी सुना रहे हैं. कविता में कथा. अद्भुत.
आदरणीय अशोक आंद्रे जी,
मैने आपकी यह कविता ही नहीं बल्कि लगभग पूरा ब्लॉग ही पढ़ लिया। आपकी इस कविता मे संवेदना की सूक्ष्मता है। अच्छा लगा कि कोई पुरुष कवि भी नारी के क़ैद सपनों की बात इतनी संवेदना और गहरी समझ के साथ कागज़ पर उकेर सकता है। बधाई
आपकी शेष कविताओं में भी एक गहन दार्शनिकता और गम्भीर सौन्दर्य है।क़ाश मै भी इतनी अच्छी तरह से अपने भावों को अभिव्यक्त कर सकती। कुछ समय पहले ही मेरा कविता संग्रह "उजाले की क़सम" भावना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। मै विदेश में हूं, आपको उसकी प्रति भेज पाने में असमर्थ हूं। कभी समय और अवसर मिले तो पढिएगा। मुझे लगता है , शायद आपको पसन्द आएगा।
सादर
अनिलप्रभा
namaskaar
!behad prabhaavi kavitaa man ko sparsh karti , behad behad sadhuwaad.
saadar
Post a Comment