(१)
सदियों से लगातार आज तकआदि और अंत के बीच
करता रहा तलाश , एक घर की
और समय के साथ
मांस और मज्जा के बीच की
तलहटियों में ,
खोता रहा
घर के सपनों को , लगातार ।
(२)
रात की तरह समय
अपनी पहचान कराते हुए
पूरे खौफ के साथ
श्मशान के पूर्वी हिस्से में
पालथी मारकर
बैठ गया था ।
हम सहज ही
मेले में
खोये हुए बच्चे की तरह
करते रहे तलाश एक अंगुली की
अपने ही आसपास - ताउम्र ।
दुःस्वप्न
एक गलियारे से
दुसरे गलियारे में जाता हुआ आदमी
मृगजाल में ठिठकता है ,
सपने लुभाते हैं उसे,
विस्फोट से पहले
दहकते पलाशों में
चमकते गलियारों में ।
लेकिन नन्ही चिड़िया सहम जाती है
उसके हाथ में ,
हरी पत्ती देखकर ।
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