माँ के लिए
(१)
माँ ! तब भी तुम विद्यमान थी
कुछ नहीं था जब इस संसार में
ब्रहम्मांड में तुम्हारी कोख ब्लैक होल की तरह
बिग - बेंग की रहस्यता को समेटे
विश्व को नया सृजन देने का सार्थक प्रयास कर रही थी ।
माँ ! मैं अजन्मा
विश्व के तरंगित वलयों में
निजता के लिए रास्ते खोज रहा था ,
तब अँधेरा घना था
खामोशियों की तह में दबी
इच्छाओं का दैहिक रूप ले रहा था विस्तार
माँ ! उस विस्तार को जना है तुमने
इस धरा की पहली किरण ने
अस्पष्ट फुसफुसाहटों को
अर्थ देने की कोशिश में बताया था मुझे ।
यह भी सच है कि उस वक्त
घबराहट के दैत्य असंख्य रूप धर रहे थे ,
तुम्हारी छाती को प्रथम ज्वार - भाटा के लिए
कर रहे थे तैयार ।
सवाल ज्वार - भाटा का नहीं था
कुछ था तो सिर्फ़ -
मेरे आकार को भू पर उतारने का था .....
तुम्हारे भागीरथ प्रयास का ही तो नतीजा हूँ में
तभी तो ईश्वर की आँखे चमक उठी थीं ,
बादलों ने गड़गड़ाहट के नगाड़े बजाये थे
ओर घाटियों ने फूलों के कालीन बिछाये थे ;
नदियाँ कल - कल करतीं वीणा के तारों को
झंकृत कर रही थीं अनवरत ......
आख़िर मेरे वजूद का सवाल अहम् था माँ तुम्हारे लिए
युगों - युगों तक धारण करती रही हो मुझे
मेरे ही वजूद की खातिर ।
(२)
विश्व के तरंगित वलयों में
निजता के लिए रास्ते खोज रहा था ,
तब अँधेरा घना था
खामोशियों की तह में दबी
इच्छाओं का दैहिक रूप ले रहा था विस्तार
माँ ! उस विस्तार को जना है तुमने
इस धरा की पहली किरण ने
अस्पष्ट फुसफुसाहटों को
अर्थ देने की कोशिश में बताया था मुझे ।
यह भी सच है कि उस वक्त
घबराहट के दैत्य असंख्य रूप धर रहे थे ,
तुम्हारी छाती को प्रथम ज्वार - भाटा के लिए
कर रहे थे तैयार ।
सवाल ज्वार - भाटा का नहीं था
कुछ था तो सिर्फ़ -
मेरे आकार को भू पर उतारने का था .....
तुम्हारे भागीरथ प्रयास का ही तो नतीजा हूँ में
तभी तो ईश्वर की आँखे चमक उठी थीं ,
बादलों ने गड़गड़ाहट के नगाड़े बजाये थे
ओर घाटियों ने फूलों के कालीन बिछाये थे ;
नदियाँ कल - कल करतीं वीणा के तारों को
झंकृत कर रही थीं अनवरत ......
आख़िर मेरे वजूद का सवाल अहम् था माँ तुम्हारे लिए
युगों - युगों तक धारण करती रही हो मुझे
मेरे ही वजूद की खातिर ।
(२)
गंतव्य तक पहुंच कर
किसी अंधे कुँए में झांकते हुए
अपने प्रतिबिम्ब को देखना
कृति हो सकती है / अनाम , अनजानी शक्ति की
लेकिन माँ के इच्छित हस्तक्षेप के बिना
उस कृति का समरूप
किसी पोखर में अनंत युगों से
ठहरे हुए पानी की सड़ांध के सिवाय
भला और क्या हो सकता है ?
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